लखनऊ में जस्टिस पैनल कमेटी (जेपीसी) की बैठक के दौरान उत्तर प्रदेश में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को लेकर जो खुलासे हुए, उन्होंने प्रशासनिक और सामाजिक हलकों में खलबली मचा दी। सरकारी सर्वे के अनुसार, वक्फ बोर्ड की 78 प्रतिशत संपत्तियां सरकार की हैं। यह मामला वाराणसी में और गंभीर होता नजर आया, जहां जिला प्रशासन ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में 406 जमीनों को सरकारी संपत्ति के रूप में चिन्हित किया।
वाराणसी की 1637 वक्फ संपत्तियां
वाराणसी में कुल 1637 संपत्तियां वक्फ बोर्ड के नाम दर्ज हैं, जिनमें से 1537 सुन्नी समुदाय और 100 शिया समुदाय की हैं। परंतु इन संपत्तियों में से 406 जमीनों पर सरकारी दावा किया गया है। यह रिपोर्ट जिला प्रशासन द्वारा उत्तर प्रदेश शासन को भेज दी गई है।
अधिकारियों का कहना है कि इस सर्वे में ग्राम पंचायत की जमीनों, चारागाह और अन्य सरकारी जमीनों का पूरा विवरण दिया गया है। साथ ही दस्तावेज भी इस रिपोर्ट में शामिल किए गए हैं। एडीएम एफआर वंदिता श्रीवास्तव ने इस बारे में जानकारी दी और रिपोर्ट को शासन को भेजने की पुष्टि की।
मुस्लिम समुदाय और वक्फ बोर्ड की आपत्ति
इस रिपोर्ट ने मुस्लिम समुदाय में नाराजगी पैदा कर दी है। ज्ञानवापी के वादी और मुस्लिम समुदाय के प्रमुख प्रतिनिधि मुख्तार ने इस रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि 406 जमीनों का आंकड़ा अविश्वसनीय है। उन्होंने दावा किया कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियां कानूनी और ऐतिहासिक रूप से सुरक्षित हैं।
मुख्तार का यह भी कहना है कि कई जगहों पर वक्फ बोर्ड की जमीनों पर दूसरे लोगों का कब्जा है, जो इस सर्वे में नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर रिपोर्ट के आधार पर कोई नोटिस आता है, तो यह मामला कोर्ट तक जाएगा।
रिपोर्ट की पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया
वक्फ बोर्ड के मामलों के अधिवक्ता निशान आलम ने इस सर्वे की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि सर्वेक्षण के दौरान संपूर्ण सरकारी अमला जुटा होगा और इसका अध्ययन किया गया होगा। अब इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि सही तथ्यों की पुष्टि हो सके।
वहीं, जिला प्रशासन का कहना है कि शासन के निर्देशों के अनुसार अगली कार्रवाई की जाएगी। प्रथम दृष्टि में यह पुख्ता हो गया है कि वक्फ बोर्ड ने सरकारी जमीनों पर कब्जा किया है। अब शासन इस मामले पर आगे का फैसला लेगा।
शासन का रुख और संभावित कानूनी लड़ाई
इस मामले की संवेदनशीलता और विवाद को देखते हुए यह तय है कि प्रशासन को इसे संभलकर हल करना होगा। दूसरी ओर, वक्फ बोर्ड और मुस्लिम समुदाय इसे न्यायालय में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि शासन की अगली कार्रवाई क्या होगी और यह मामला किस दिशा में जाएगा।