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लिव-इन रिलेशनशिप के लिए जरूरी रजिस्ट्रेशन! जान लीजिए कितनी लगेगी फीस?

27 जनवरी से लागू हुए UCC ने विवाह, तलाक और सहवासी संबंधों में लाई नई क्रांति, जानें कैसे होगा हर रजिस्ट्रेशन और क्यों इसे कहा जा रहा है ऐतिहासिक कदम!

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उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को 27 जनवरी से लागू कर दिया गया है, जिससे यह देश का पहला राज्य बन गया है जिसने इस पहल को वास्तविकता में बदल दिया है। इस अधिनियम के तहत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध और अन्य संबंधित मुद्दों को नियमित और नियंत्रित किया जाएगा। UCC के लागू होने के साथ ही बहुविवाह पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। इसके अलावा, लिव-इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन अब अनिवार्य कर दिया गया है।

बहुविवाह पर पूर्ण प्रतिबंध और रजिस्ट्रेशन की नई व्यवस्था

UCC के तहत, बहुविवाह पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। जो लोग पहले से बहुविवाह में हैं, उन्हें भी अब अपना रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। रजिस्ट्रेशन के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया को 15 दिनों के भीतर पूरा करने की व्यवस्था की गई है।

  • सामान्य रजिस्ट्रेशन के लिए शुल्क 250 रुपये निर्धारित किया गया है।
  • तत्काल रजिस्ट्रेशन चाहने वालों को 2,500 रुपये का शुल्क देना होगा।

रजिस्ट्रार को आवेदन 15 दिनों के भीतर निपटाने होंगे, अन्यथा मामला स्वतः ही रजिस्ट्रार जनरल के पास चला जाएगा। UCC में अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की गई है ताकि प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।

विधानसभा चुनाव और UCC लागू करने की प्रतिबद्धता

2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने UCC लागू करने का वादा किया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में सरकार ने सत्ता में आते ही इस दिशा में तेज़ी से कदम उठाए। मार्च 2022 में मंत्रिमंडल की पहली बैठक में UCC प्रस्ताव को मंजूरी दी गई और मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया।

27 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी, जिसने लगभग डेढ़ वर्ष के शोध और विचार-विमर्श के बाद विस्तृत रिपोर्ट तैयार की। यह रिपोर्ट 2 फरवरी 2024 को राज्य सरकार को सौंपी गई। इसके बाद, 7 फरवरी 2024 को राज्य विधानसभा के विशेष सत्र में UCC विधेयक पारित किया गया और 12 मार्च 2024 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई।

UCC के प्रमुख प्रावधान

UCC का उद्देश्य सभी धर्मों में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना है। इसमें पुरुषों और महिलाओं के लिए समान विवाह योग्य आयु, तलाक के आधार और प्रक्रियाओं को तय किया गया है।

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  • बहुविवाह और हलाला पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।
  • सभी विवाहों और सहवासी संबंधों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है।
  • विवाह और सहवासी संबंधों से जन्मे बच्चों को समान अधिकार देने का प्रावधान किया गया है।

UCC की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें ‘नाजायज’ शब्द को पूरी तरह से हटा दिया गया है। साथ ही, वसीयत तैयार करने की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया गया है।

प्रिविलेज्ड वसीयत का प्रावधान

UCC में सैनिकों के लिए विशेष रूप से ‘प्रिविलेज्ड वसीयत’ का प्रावधान किया गया है। इसके तहत, सक्रिय सेवा में तैनात सैनिक अपनी हस्तलिखित या मौखिक वसीयत बना सकते हैं। इस प्रावधान का उद्देश्य जोखिम वाले क्षेत्रों में तैनात सैनिकों को सुविधा प्रदान करना है।

विशेषज्ञों की राय

दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल, जो UCC के मसौदा और नियमावली तैयार करने वाली समितियों का हिस्सा रही हैं, ने इसे लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया।

उन्होंने कहा, “UCC की मूल भावना सभी धर्मों में लैंगिक समानता लाना है। विवाह और अमान्य विवाहों से जुड़े विवादों को दूर करने में यह अधिनियम क्रांतिकारी सिद्ध होगा। लोगों को अपनी शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे क्योंकि इसके लिए ऑनलाइन व्यवस्था की गई है।”

मॉडल के रूप में अन्य राज्यों की प्रतिक्रिया

UCC लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, लेकिन इसके बाद कई अन्य राज्य, जैसे असम, इस अधिनियम को मॉडल के रूप में अपनाने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं।

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