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Supreme Court: पैतृक कृषि भूमि पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पैतृक संपत्ति वाले जरूर जान लें कानून!

सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक कृषि भूमि की बिक्री के लिए परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता देने का आदेश दिया है। यह निर्णय पारिवारिक संपत्ति को बाहरी व्यक्तियों के हाथों में जाने से रोकने और परिवार के भीतर संपत्ति बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया है।

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Supreme Court: पैतृक कृषि भूमि पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, पैतृक संपत्ति वाले जरूर जान लें कानून!
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पैतृक कृषि भूमि को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने इस विषय पर स्पष्टता प्रदान की है। यह फैसला किसानों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे कृषि भूमि की खरीद-बिक्री (ancestral agricultural land selling rules) से जुड़े अधिकारों और प्रावधानों का विस्तार से पता चलता है। इस निर्णय के अनुसार, यदि किसी परिवार का सदस्य अपनी पैतृक भूमि बेचना चाहता है, तो उसे सबसे पहले अपने परिवार के अन्य सदस्यों को इसका प्रस्ताव देना होगा।

परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि कृषि भूमि को बेचने से पहले परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। यह निर्णय हिमाचल प्रदेश के एक मामले में आया, जिसमें पूछा गया था कि क्या कृषि भूमि विशेष कानूनी धारा 22 के प्रावधानों (provisions of legal section 22) के तहत आती है। अदालत ने कहा कि इस प्रावधान का उद्देश्य पारिवारिक संपत्ति को बाहरी व्यक्तियों के हाथों में जाने से रोकना है।

संपत्ति का परिवार के भीतर रहना क्यों ज़रूरी है?

कानून के मुताबिक, यदि किसी व्यक्ति का निधन बिना वसीयत लिखे हो जाता है, तो उसकी संपत्ति स्वाभाविक रूप से उसके उत्तराधिकारियों को मिलती है। ऐसे मामलों में, यदि कोई सदस्य अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहता है, तो उसे परिवार के अन्य सदस्यों को पहले यह प्रस्ताव देना होता है। इससे पारिवारिक संपत्ति बाहरी व्यक्तियों को बेचने से बचाई जा सकती है।

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विशेष कानूनी धारा 22 और भूमि बंटवारे के प्रावधान

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पैतृक कृषि भूमि विशेष कानूनी धारा 22 के अधीन आती है। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि जब भी कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति बेचना चाहे, तो उसे पहले परिवार के सदस्य को ही प्राथमिकता देनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि पुराने प्रावधान, जैसे धारा 4 (2), भले ही समाप्त हो चुके हों, लेकिन उनके उद्देश्य अभी भी प्रभावी हैं।

यह मामला क्या था?

इस फैसले का मुख्य संदर्भ एक मामले से जुड़ा है, जिसमें लाजपत नामक व्यक्ति की पैतृक संपत्ति के दो बेटों संतोष और नाथू के बीच विवाद हुआ। लाजपत के निधन के बाद यह संपत्ति उनके बेटों को मिली। संतोष ने अपनी हिस्सेदारी बाहरी व्यक्ति को बेच दी, जिसका नाथू ने विरोध किया। नाथू ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और दलील दी कि धारा 22 के तहत उसे इस संपत्ति पर पहले अधिकार होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने नाथू के पक्ष में फैसला सुनाया और संतोष की बिक्री को अवैध ठहराया।

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