![अगर सरकार आपकी संपत्ति का अधिग्रहण करना चाहे तो जान लें ये संवैधानिक अधिकार](https://rcisgbau.in/wp-content/uploads/2025/02/Supreme-Court-On-Land-Acquisition-Rules-1024x576.jpg)
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court on land acquisition) ने भूमि अधिग्रहण से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिससे भूस्वामियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होगी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकारें भले ही किसी भी व्यक्ति की संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें कुछ महत्वपूर्ण नियमों और शर्तों का पालन करना आवश्यक होगा। यह निर्णय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300 (A) के तहत दिए गए प्रावधानों के आधार पर लिया गया है।
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भूमि अधिग्रहण और नागरिक अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार शामिल थे, ने अपने फैसले में अनुच्छेद 300 (A) पर विशेष रूप से जोर दिया। इस अनुच्छेद के अनुसार, बिना कानूनन अधिकार के किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि अधिग्रहण इस अनुच्छेद में निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करता, तो उसे असंवैधानिक माना जाएगा।
अनुच्छेद 300 (A) के तहत भूमि अधिग्रहण के 7 उप-अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में भूमि अधिग्रहण से जुड़े 7 महत्वपूर्ण अधिकारों का उल्लेख किया, जो भूस्वामियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये उप-अधिकार निम्नलिखित हैं:
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नोटिस का अधिकार
- सरकार का यह कर्तव्य है कि वह संपत्ति के मालिक को सूचित करे कि उसकी संपत्ति अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित है। बिना पूर्व सूचना के भूमि अधिग्रहण अवैध माना जाएगा।
सुनवाई का अधिकार
- जिस व्यक्ति की संपत्ति अधिग्रहण के दायरे में आ रही है, उसे अपनी आपत्तियां दर्ज कराने का अधिकार है। सरकार को उसकी आपत्तियों को सुनना और उनका उचित निवारण करना होगा।
तर्कसंगत निर्णय का अधिकार
- सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि भूमि अधिग्रहण का निर्णय पूरी तरह से पारदर्शी और तर्कसंगत हो। इसे मनमाने ढंग से लागू नहीं किया जा सकता।
केवल सार्वजनिक हित में अधिग्रहण
- भूमि का अधिग्रहण केवल ‘सार्वजनिक उद्देश्य’ (Public Purpose) के लिए ही किया जा सकता है। किसी निजी कंपनी या व्यक्ति के लाभ के लिए भूमि अधिग्रहण अवैध माना जाएगा।
उचित मुआवजा या पुनर्वास
- सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि भूस्वामियों को उनकी भूमि के बदले उचित मुआवजा दिया जाए या उन्हें समुचित पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जाए।
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समयबद्ध और कुशल प्रक्रिया
- भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को दक्षता और समय-सीमा के भीतर पूरा करना अनिवार्य होगा। इस प्रक्रिया में अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए।
निष्कर्ष का अधिकार
- सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पूरी प्रक्रिया उचित निष्कर्ष तक पहुंचे और प्रभावित व्यक्ति को इस प्रक्रिया के अंतिम परिणाम की जानकारी दी जाए।
भूमि अधिग्रहण कानून और 2013 का नया अधिनियम
इससे पहले, भूमि अधिग्रहण से जुड़े कई कानून लागू थे, जिनमें 1894 का भूमि अधिग्रहण अधिनियम प्रमुख था। हालांकि, 2013 में इसे अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने के लिए भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम लाया गया। इसमें उचित मुआवजे और पारदर्शिता पर विशेष जोर दिया गया है।
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44वें संविधान संशोधन के बाद क्या बदला?
भारत के संविधान में 1978 में 44वां संशोधन किया गया, जिसमें अनुच्छेद 31 को हटाकर संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी से बाहर कर दिया गया। इससे पहले, भूमि अधिग्रहण के मामलों में नागरिक अदालतों का दरवाजा खटखटाते थे, लेकिन सरकार ने इस संशोधन के जरिए कहा कि संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं रहेगा। इसे अनुच्छेद 300 (A) में डाल दिया गया, जिससे सरकार को भूमि अधिग्रहण करने की शक्ति तो मिली, लेकिन उसे कुछ आवश्यक शर्तों का पालन करना पड़ा।
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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना आवश्यक है। सरकारें मनमाने ढंग से लोगों की संपत्तियों का अधिग्रहण नहीं कर सकतीं। इसके अलावा, भूस्वामियों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे अपने हितों की रक्षा कर सकें।