सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा है कि बेटी को अपने माता-पिता से शिक्षा का खर्च प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने इस मामले में टिप्पणी की, जो एक वैवाहिक विवाद से जुड़ा था। इस मामले में, अलग रह रहे दंपति की बेटी ने अपनी पढ़ाई के लिए पिता द्वारा दिए गए 43 लाख रुपये लेने से मना कर दिया। यह मामला इस बात को रेखांकित करता है कि बेटी की शिक्षा का अधिकार उसके माता-पिता की जिम्मेदारी है, जिसे वे अपनी वित्तीय क्षमता के अनुसार पूरा करने के लिए बाध्य हैं।
मामला और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
यह मामला उस समय चर्चा में आया जब एक दंपति की बेटी, जो आयरलैंड में पढ़ाई कर रही है, ने अपने पिता द्वारा उसकी शैक्षणिक जरूरतों के लिए दिए गए पैसे लेने से इनकार कर दिया। बेटी ने अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेटी को शिक्षा के लिए यह राशि प्राप्त करना न केवल उसका अधिकार है, बल्कि यह माता-पिता की कानूनी जिम्मेदारी भी है।
कोर्ट ने कहा कि बेटी को अपनी शिक्षा जारी रखने का मौलिक अधिकार है और इसके लिए माता-पिता को अपनी वित्तीय सीमा में रहते हुए आवश्यक धनराशि प्रदान करनी होगी। पीठ ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करते हुए, उन्होंने इस मामले में दंपति का तलाक आपसी सहमति से मंजूर कर लिया है।
समझौते और अदालत की टिप्पणी
अलग रह रहे इस दंपति ने 28 नवंबर 2024 को एक समझौता किया था, जिसके अनुसार पति ने अपनी पत्नी और बेटी को 73 लाख रुपये देने पर सहमति जताई थी। इस राशि में 43 लाख रुपये बेटी की शिक्षा के लिए थे, जबकि 30 लाख रुपये पत्नी के हिस्से में गए। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि 30 लाख रुपये पत्नी को दिए जा चुके हैं।
कोर्ट ने यह कहते हुए मामला निपटाया कि दंपति पिछले 26 वर्षों से अलग रह रहे हैं और आपसी सहमति से तलाक देना ही उनके लिए उचित समाधान है।