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बेटियों को जमीन ना देने पर भड़के सुप्रीम कोर्ट के जज, जानें क्या कहा Supreme Court News

लक्ष्मी और सरस्वती की पूजा करने वाला पिता बेटियों को भूल गया! सुप्रीम कोर्ट ने जमीन देने की शर्त पर दी राहत, पढ़ें पूरा मामला।

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान अपनी नाराजगी व्यक्त की, जिसमें एक शख्स पर अपनी बेटियों की सही देखभाल न करने का आरोप था। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने उसे कड़ी फटकार लगाते हुए कहा, “आप जैसे क्रूर आदमी को हम अपनी अदालत में कैसे घुसने दे सकते हैं?”

इस दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह व्यक्ति अपने घर में कभी लक्ष्मी पूजा करता है तो कभी सरस्वती पूजा, लेकिन अपनी बेटियों के साथ क्रूर व्यवहार करता है। कोर्ट ने इस रवैये को भारतीय समाज की पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ बताया।

कोर्ट ने क्या कहा?

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह मामला केवल दहेज उत्पीड़न का नहीं, बल्कि बेटियों के अधिकारों की अनदेखी का भी है। कोर्ट ने कहा, “आप किस तरह के इंसान हैं? यदि आप अपनी बेटियों की भी परवाह नहीं कर सकते, तो हम आपकी बात क्यों सुनें?”

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह आरोपी के पक्ष में तब तक कोई आदेश पारित नहीं करेगी जब तक वह अपनी बेटियों के नाम पर खेती की जमीन देने के लिए सहमत न हो।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 2009 का है, जब याचिकाकर्ता योगेश्वर साओ पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। निचली अदालत ने 2015 में उसे दोषी ठहराते हुए ढाई साल की सजा सुनाई थी। अदालत के अनुसार, साओ ने अपनी पत्नी से 50,000 रुपये के दहेज की मांग की थी और उसे प्रताड़ित किया था। इस दंपत्ति की शादी 2003 में हुई थी और उनकी दो बेटियां हैं।

इस मामले में यह भी आरोप लगाया गया था कि योगेश्वर साओ ने दूसरी महिला से शादी कर ली थी। हालांकि, झारखंड हाई कोर्ट ने 2016 में 11 महीने की हिरासत के बाद उसकी सजा को निलंबित कर दिया था। हाई कोर्ट ने सितंबर 2024 में उसके दोष को बरकरार रखा लेकिन यह स्पष्ट किया कि दूसरी शादी के आरोप का कोई ठोस सबूत नहीं मिला।

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सजा में हुई कमी

हाई कोर्ट ने साओ की सजा को घटाकर डेढ़ साल कर दिया और उसे एक लाख रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया। इसके बाद, साओ ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी बेटियों के भविष्य को प्राथमिकता देते हुए जमीन का हिस्सा उनके नाम करने का प्रस्ताव रखा। कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटियों का अधिकार पिता की संपत्ति में है और उनकी देखभाल न करना एक बड़ा अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को न केवल कानूनी, बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी देखा। कोर्ट ने यह संदेश दिया कि बेटियों के अधिकारों और सम्मान की अनदेखी को स्वीकार नहीं किया जाएगा।

न्यायालय ने कहा, “आपकी बेटियां आपके परिवार की लक्ष्मी और सरस्वती हैं। यदि आप उनका सम्मान नहीं कर सकते, तो अदालत आपके पक्ष में कैसे आदेश पारित कर सकती है?”

क्या है इस फैसले का प्रभाव?

यह फैसला न केवल दहेज उत्पीड़न के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को मजबूत करता है, बल्कि बेटियों के अधिकारों को प्राथमिकता देने का भी एक संदेश देता है। इस फैसले से यह स्पष्ट हुआ है कि किसी भी परिवार में बेटियों के अधिकार और उनका सम्मान सर्वोपरि है।

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