सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक अहम फैसले में कहा है कि अगर किसी व्यक्ति ने दूसरी शादी की है और बाद में तलाक (Divorce) हो गया है, तो उसे अपनी पत्नी को भरण-पोषण (Alimony) देना होगा, भले ही उसकी पहली शादी का मामला अदालत में लंबित हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह बहाना नहीं चल सकता कि पहली शादी का कानूनी मामला अभी तक सुलझा नहीं है।
यह फैसला जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने दिया। कोर्ट ने कहा कि अगर पहली शादी बातचीत के आधार पर खत्म हो गई है, तो दूसरी शादी पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। भरण-पोषण की जिम्मेदारी से बचने के लिए पहली शादी का लंबित मामला कोई तर्क नहीं हो सकता।
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क्या है पूरा मामला?
तेलंगाना (Telangana) की रहने वाली उषा रानी ने 1999 में एम. श्रीनिवास से शादी की थी। यह उनकी दूसरी शादी थी। शादी के एक साल बाद दोनों का एक बेटा हुआ, लेकिन 2005 में कुछ कारणों से दोनों के बीच तलाक हो गया। उषा रानी ने अपने और अपने बेटे के भरण-पोषण के लिए परिवार न्यायालय (Family Court) का रुख किया, लेकिन अदालत ने इस आधार पर राहत देने से इनकार कर दिया कि श्रीनिवास की पहली शादी का मामला अभी तक अदालत में लंबित था।
बाद में यह मामला हैदराबाद हाईकोर्ट (Hyderabad High Court) पहुंचा, लेकिन हाईकोर्ट ने भी उषा रानी की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, जहां लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने उषा रानी के पक्ष में फैसला दिया।
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कोर्ट का तर्क और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1999 से 2000 तक उषा रानी कानूनी रूप से श्रीनिवास की पत्नी थीं और दोनों का एक बेटा भी था। ऐसे में यह कहना कि उन्हें भरण-पोषण का अधिकार नहीं है, पूरी तरह से गलत होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि दूसरी शादी हो चुकी है और बाद में उसका तलाक भी हो जाता है, तो पत्नी के लिए भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति पर ही रहेगी।
फैसले का प्रभाव
यह फैसला उन महिलाओं के लिए एक मिसाल साबित हो सकता है, जो भरण-पोषण के लिए अदालतों में लंबी लड़ाई लड़ रही हैं। अदालत ने यह साफ कर दिया कि पति दूसरी शादी के बाद तलाक की स्थिति में यह दावा नहीं कर सकता कि उसकी पहली शादी का मामला अभी भी लंबित है। इस फैसले से उन महिलाओं को राहत मिलेगी, जो कानूनी रूप से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं।
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पहले भी आए हैं ऐसे फैसले
यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के भरण-पोषण से जुड़े अधिकारों को लेकर कड़ा रुख अपनाया हो। इससे पहले भी कई मामलों में अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि तलाक के बाद महिलाओं के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की ही होती है।
निचली अदालतों के आदेश हुए खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसलों को खारिज करते हुए कहा कि भरण-पोषण के मामले में यह देखना जरूरी नहीं है कि पति की पहली शादी का मामला लंबित है या नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है, लेकिन भरण-पोषण से इनकार करने के लिए इसे तर्क के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
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महिलाओं के लिए बड़ी राहत
इस फैसले के बाद तलाकशुदा महिलाओं को कानूनी रूप से बड़ा समर्थन मिलेगा। कई महिलाएं भरण-पोषण पाने के लिए वर्षों तक अदालतों के चक्कर लगाती हैं, लेकिन इस फैसले से यह साफ हो गया कि अगर कानूनी रूप से शादी हुई है और बाद में तलाक हुआ है, तो भरण-पोषण की जिम्मेदारी पति की ही होगी।