देश और दुनिया में रिलेशनशिप को लेकर विवादों में डीएनए टेस्ट (DNA Test) कई बार निर्णायक प्रमाण बनकर सामने आया है। इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने डीएनए टेस्ट के जरिए पितृत्व जांच की अनुमति देने पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। मंगलवार को सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में बच्चे और माता-पिता की गोपनीयता (Privacy) का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना पर्याप्त कारण के डीएनए टेस्ट कराना व्यक्ति की निजता (Right to Privacy) का उल्लंघन हो सकता है।
न्यायिक पीठ ने सुनवाई के दौरान दी अहम टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केरल के एक व्यक्ति से जुड़े पितृत्व विवाद के मामले में आई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इस विवाद की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जब भी पितृत्व जांच का मामला सामने आता है तो सबसे पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि डीएनए टेस्ट (DNA Test) वाकई में जरूरी है या नहीं।
जबरन डीएनए टेस्ट से निजता का हनन संभव
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जबरन डीएनए टेस्ट व्यक्ति की निजी जानकारी को उजागर कर सकता है, जिससे उसकी सामाजिक और पेशेवर प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंच सकता है। विशेष रूप से यदि मामला विवाहेतर संबंधों या बेवफाई से जुड़ा हो, तो इससे व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। इसलिए, अदालतों को इस तरह के मामलों में पूरी सतर्कता बरतनी चाहिए और दोनों पक्षों के हितों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए।
डीएनए टेस्ट का वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू
डीएनए टेस्ट वैज्ञानिक रूप से सटीक माना जाता है और पितृत्व, अपराध जांच (Crime Investigation) और चिकित्सा मामलों (Medical Cases) में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि कानूनी प्रक्रिया में वैज्ञानिक परीक्षणों के अलावा सामाजिक और नैतिक पहलुओं को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। निजता और प्रतिष्ठा की रक्षा करना भी न्याय का अभिन्न हिस्सा होना चाहिए।
डीएनए टेस्ट के लिए कानूनी प्रावधान
रिपोर्ट्स के अनुसार, आमतौर पर पितृत्व जांच, अपराध जांच, संपत्ति विवाद (Property Disputes) और चिकित्सा कारणों से डीएनए टेस्ट किया जाता है। लेकिन इसे बिना सहमति के नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने भी अपने फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि डीएनए टेस्ट निजता के अधिकार (Right to Privacy) से जुड़ा मामला है और इसे केवल अत्यंत आवश्यक परिस्थितियों में ही अनुमति दी जानी चाहिए। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) और आईटी अधिनियम, 2000 (IT Act, 2000) के तहत भी डेटा सुरक्षा और जांच प्रक्रिया को विनियमित किया जाता है ताकि व्यक्तिगत गोपनीयता (Data Privacy) बनी रहे।
निजता और डीएनए टेस्ट के बीच संतुलन जरूरी
यह निर्णय ऐसे समय पर आया है जब निजता से जुड़े अधिकारों को लेकर बहस तेज हो रही है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि कानून को वैज्ञानिक साक्ष्यों और व्यक्तिगत अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। डीएनए टेस्ट (DNA Test) कई मामलों में उपयोगी साबित होता है, लेकिन इसे बिना पर्याप्त कारण के करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है।