भारत में जबरन विवाह की घटनाएं एक गंभीर सामाजिक समस्या रही हैं। इस संदर्भ में, देश की सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश को रद्द कर दिया, जिसमें पत्नी को 4000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने की शर्त पर जमानत मंजूर की गई थी।
यह मामला बिहार से संबंधित था, जहां अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसका जबरन अपहरण कर विवाह कराया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जमानत के लिए इस प्रकार की अप्रासंगिक शर्तें सीआरपीसी की धारा 438 के तहत शक्ति के दायरे में नहीं आतीं। यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में तटस्थता और विधिक संरचना को बनाए रखने के उद्देश्य से दिया गया।
हाईकोर्ट का फैसला और उसकी समीक्षा
हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता की जमानत को पत्नी को 4000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने की शर्त पर मंजूर किया था। इस पर अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। शीर्ष अदालत की पीठ, जिसमें जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी शामिल थे, ने कहा कि इस प्रकार की शर्तों का उद्देश्य जमानत के मूल सिद्धांत से मेल नहीं खाता। जमानत का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आरोपी न्याय प्रक्रिया का पालन करे, न कि उसे वित्तीय जिम्मेदारी सौंपकर दबाव में डाला जाए।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया कि जमानत की शर्तें केवल इस बात पर आधारित होनी चाहिए कि आरोपी मुकदमे के दौरान उपस्थित रहेगा। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि ऐसे मामलों में जहां जबरन विवाह जैसे आरोप लगाए गए हैं, वित्तीय भत्ते का निर्धारण उचित प्रक्रिया के तहत अलग से किया जाना चाहिए।
कोयला घोटाले में जज की निष्पक्षता का उदाहरण
उसी दिन, सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य मामले में जस्टिस केवी विश्वनाथन ने निष्पक्षता का उदाहरण प्रस्तुत किया। कोयला घोटाले से जुड़े एक मामले में उन्होंने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया क्योंकि वह पहले एक वकील के रूप में उस मामले में पेश हुए थे। यह न्यायपालिका में नैतिकता और निष्पक्षता का एक आदर्श उदाहरण है।