आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने हाल ही में एक बड़ा और विवादास्पद बयान देते हुए कहा कि उनकी सरकार इस दिशा में काम कर रही है कि भविष्य में सिर्फ दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को ही पंचायत और नगरपालिका चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए। यह निर्णय हाल ही में संशोधित किए गए एक कानून के बाद आया है, जिसके तहत दो बच्चों से अधिक वाले लोगों को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया गया था। मुख्यमंत्री का यह बयान राज्य और देश में जनसंख्या वृद्धि और प्रजनन दर के मुद्दे पर राष्ट्रीय बहस छेड़ने का कारण बन गया है।
क्यों ज़रूरी है यह कदम?
नायडू का मानना है कि भारत को आने वाले वर्षों में बढ़ती उम्र की आबादी की समस्या से बचने के लिए प्रजनन दर को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जापान, कोरिया और कई यूरोपीय देशों की तरह, भारत भी जल्द ही “बूढ़े देश” की श्रेणी में आ सकता है। ये देश अपने घटते जनसंख्या अनुपात और बढ़ती वृद्ध आबादी के कारण आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
नायडू ने जोर देते हुए कहा कि भारत को 2047 तक जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा उठाने के लिए अभी से प्रभावी नीतियों को अपनाने की जरूरत है। उनका सुझाव है कि अगर दो बच्चों की नीति के बजाय तीन या अधिक बच्चों वाले परिवारों को प्रोत्साहन दिया जाए, तो यह भविष्य में जनसांख्यिकीय स्थिरता में सहायक होगा।
ज्यादा बच्चों वाले परिवारों के लिए विशेष लाभ
मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि उनकी सरकार ज्यादा बच्चों वाले परिवारों के लिए विशेष प्रोत्साहन योजनाओं पर काम कर रही है। इन योजनाओं में पंचायत और नगरपालिका चुनावों में ऐसे परिवारों को भाग लेने की अनुमति देना, और ज्यादा सब्सिडी वाले चावल मुहैया कराना शामिल है। वर्तमान में हर परिवार को 25 किलोग्राम सब्सिडी वाले चावल दिए जाते हैं, लेकिन नए प्रस्ताव के अनुसार ज्यादा बच्चों वाले परिवारों को अतिरिक्त सब्सिडी दी जाएगी।
अन्य देशों से सबक
नायडू ने जापान और कोरिया जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि ये देश अब अपनी नीतियों पर पुनर्विचार कर रहे हैं और भारतीयों को अपने यहां काम करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “भारत को भी परिवार नियोजन की पुरानी अवधारणा को दोबारा विचार करने की जरूरत है। कम बच्चों के विचार ने हमें भविष्य की चुनौतियों के लिए कमजोर बना दिया है।”
दक्षिणी राज्यों की प्रजनन दर: एक तुलनात्मक दृष्टिकोण
आंकड़ों के अनुसार, दक्षिण भारत के राज्यों की कुल प्रजनन दर (TFR) 1.73 है, जो राष्ट्रीय औसत 2.1 से काफी कम है। यह उन राज्यों की स्थिर आबादी का संकेत देता है। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड जैसे बड़े राज्यों की टीएफआर 2.4 है, जो राष्ट्रीय औसत से अधिक है। नायडू का सुझाव है कि दक्षिण भारतीय राज्यों को भी प्रजनन दर बढ़ाने की दिशा में कदम उठाने चाहिए।