भारत में संयुक्त परिवार की परंपरा ने सदियों से समाज में एकता और सह-अस्तित्व का संदेश दिया है। लेकिन बदलते वक्त और बढ़ती व्यक्तिगत प्राथमिकताओं के चलते यह संस्कृति धीरे-धीरे सिंगल फैमिली में बदल रही है। इस बदलाव के साथ, संपत्ति को लेकर विवाद भी बढ़ते जा रहे हैं। हर तीसरे परिवार में संपत्ति को लेकर झगड़े की खबर सुनने को मिलती है। कई बार यह विवाद परिवार के भीतर ही सुलझ जाता है, लेकिन कई मामलों में यह कोर्ट-कचहरी तक पहुंच जाता है।
पैतृक संपत्ति पर अधिकार का महत्व
पैतृक संपत्ति में हिस्सा हर उस व्यक्ति का अधिकार है, जो परिवार का हिस्सा है। भारतीय समाज में यह विवाद तब और गहरा हो जाता है जब बेटियों को उनके कानूनी हक से वंचित कर दिया जाता है। पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) वह संपत्ति होती है जो परिवार के बुजुर्ग चार पीढ़ियों तक के लिए छोड़ जाते हैं। भारतीय कानून के मुताबिक, पैतृक संपत्ति में किसी भी वारिस का अधिकार जन्म के साथ ही तय हो जाता है।
बेटियों का पैतृक संपत्ति में हक
हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 ने बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर अधिकार दिया है। इससे पहले, केवल परिवार के पुरुषों को ही उत्तराधिकारी का दर्जा मिलता था। इस संशोधन ने भारतीय समाज में एक बड़ा बदलाव लाया, जहां बेटियों को भी उनके अधिकार सुनिश्चित किए गए। अगर पैतृक संपत्ति का बंटवारा होता है, तो बेटियों को भी बराबर का हिस्सा मिलता है।
अगर संपत्ति में हिस्सा न मिले तो क्या करें?
अगर दादा, पिता या भाई पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार करें, तो आप निम्न कानूनी कदम उठा सकते हैं:
- कानूनी नोटिस (Legal Notice): सबसे पहले एक वकील के माध्यम से कानूनी नोटिस भेजें। इसमें स्पष्ट रूप से पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार का उल्लेख करें।
- सिविल कोर्ट में मुकदमा दर्ज करें: आप सिविल कोर्ट में जाकर संपत्ति पर दावा पेश कर सकते हैं। यह कोर्ट तय करेगा कि आपका हक कितना है और कैसे उसे लागू किया जाए।
- प्रॉपर्टी पर रोक लगवाएं: अगर मामला कोर्ट में विचाराधीन है, तो यह सुनिश्चित करने के लिए कोर्ट से प्रॉपर्टी की बिक्री पर रोक लगवाएं कि संपत्ति को बगैर आपकी सहमति के बेचा न जाए।
- अगर संपत्ति बेची जा चुकी है: अगर आपकी सहमति के बिना संपत्ति बेची गई है, तो खरीदार को केस में पार्टी बनाकर अपने हिस्से का दावा करें।
संपत्ति विवादों में बेटियों की स्थिति
हालांकि, कानून ने बेटियों को समान अधिकार दिए हैं, लेकिन समाज में इस कानून का पालन हर जगह नहीं हो रहा। आज भी कई बेटियां अपने अधिकारों से वंचित रह जाती हैं। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में बेटियों को संपत्ति का हिस्सा देना सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ माना जाता है।
कानून से पहले सामाजिक सोच बदलने की जरूरत
बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार देना न सिर्फ कानून का पालन है, बल्कि यह सामाजिक समानता की ओर एक बड़ा कदम भी है। यदि समाज में बेटियों को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है, तो यह परिवार और समाज दोनों के लिए नुकसानदायक है।
कैसे बदलेगी स्थिति?
संपत्ति विवाद को सुलझाने के लिए सबसे पहले परिवार के भीतर संवाद स्थापित करना जरूरी है। कानूनी लड़ाई अक्सर लंबे समय तक चलती है और परिवार के रिश्तों को और बिगाड़ देती है। यदि परिवार के सदस्य मिल-बैठकर इन विवादों को सुलझाने की कोशिश करें, तो न केवल समय की बचत होगी, बल्कि संबंधों में भी सुधार होगा।
कानूनी अधिकारों की जानकारी जरूरी
संपत्ति विवादों में लड़कियों और महिलाओं को अपने कानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक होना चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि पैतृक संपत्ति में उनका अधिकार जन्म के साथ ही तय हो जाता है। सही जानकारी और जागरूकता ही उन्हें उनके अधिकार दिलाने में मदद कर सकती है।