पति-पत्नी ने वैवाहिक विवाद के चलते फैमिली कोर्ट में आपसी सहमति से तलाक लिया था। लेकिन तलाक के बाद, उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और वे फिर से साथ रहने की इच्छा जताने लगे। इसके लिए उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट से फैमिली कोर्ट के तलाक के आदेश को रद्द करने की अपील की। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि वे अगर साथ रहना चाहते हैं तो उन्हें दोबारा विवाह करना होगा। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत तलाक के आदेश को रद्द करना संभव नहीं है।
हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की अपील को यह कहकर खारिज किया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से लिए गए तलाक को रद्द करने की कोई कानूनी गुंजाइश नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि तलाकशुदा दंपत्ति साथ रहना चाहते हैं तो उन्हें दोबारा शादी करनी होगी।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया पूरी तरह से कानूनी है, और इसे रद्द करने का प्रयास कोर्ट के आदेश की अवमानना के समान होगा।
तलाक के बाद पति-पत्नी का पक्ष
याचिकाकर्ता पति-पत्नी ने कोर्ट में दलील दी कि तलाक के बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और अब वे नाबालिग बच्चे के कल्याण के लिए साथ रहना चाहते हैं। उनका कहना था कि तलाक का सबसे गहरा असर उनके बच्चे पर पड़ा है, और इसीलिए वे फिर से परिवार के रूप में साथ आना चाहते हैं।
क्या कहता है कानून?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी आपसी सहमति से तलाक की अनुमति देती है। इसके तहत दिए गए तलाक आदेश को चुनौती देने का कोई प्रावधान नहीं है। साथ ही, सीपीसी की धारा 96(3) के अनुसार, आपसी सहमति से पारित तलाक आदेश के खिलाफ अपील करना संभव नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 के तहत तलाक के बाद पुनर्विवाह की अनुमति है। यदि दोनों पक्ष सहमत हैं, तो वे दोबारा शादी कर सकते हैं।
नाबालिग बच्चे पर तलाक का असर
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया कि तलाक का सबसे गहरा असर उनके नाबालिग बच्चे पर पड़ा है। उन्होंने कोर्ट को यह समझाने की कोशिश की कि साथ रहना बच्चे के भविष्य के लिए बेहतर होगा। लेकिन हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक का आदेश वापस लेना कानूनन संभव नहीं है।
कोर्ट का रुख और नतीजा
कोर्ट ने कहा कि यदि तलाकशुदा दंपत्ति साथ आना चाहते हैं, तो उनके पास केवल एक विकल्प है – पुनर्विवाह। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि तलाक की प्रक्रिया के दौरान दिए गए बयान और शपथ पत्र वापस लेना कोर्ट की गरिमा और विश्वास को कमजोर कर सकता है।