लखनऊ में रहमानखेड़ा क्षेत्र पिछले कुछ दिनों से बाघ की दहशत के साए में है। वन विभाग की तमाम कोशिशों के बावजूद बाघ को पकड़ना मुश्किल साबित हो रहा है। बाघ की चपलता और सतर्कता के चलते उसे पकड़ने के प्रयास बार-बार विफल हो रहे हैं। ग्रामीणों में बाघ का भय इतना गहरा गया है कि उन्होंने घरों से बाहर निकलना बंद कर दिया है। बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डीएम ने प्रभावित इलाकों के स्कूल और कॉलेज बंद रखने का आदेश दिया है।
बाघ के खौफ से बदली दिनचर्या
रहमानखेड़ा और आसपास के गांवों में बाघ की मौजूदगी ने लोगों की दिनचर्या को बुरी तरह प्रभावित किया है। मीठे नगर और उलरापुर जैसे गांवों के स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे हैं। प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक तो अपने कर्तव्य पर उपस्थित हो रहे हैं, लेकिन विद्यार्थी गायब हैं। सर्दी की छुट्टियों के बाद खुले स्कूल भी बाघ की दहशत के कारण वीरान पड़े हैं। हाईस्कूल और इंटर के छात्र भी लंबे रास्ते तय कर स्कूल जाने से डर रहे हैं, जिससे उनकी बोर्ड परीक्षा की तैयारी बाधित हो रही है।
वन विभाग की रणनीति और चुनौतियां
बाघ को पकड़ने के लिए वन विभाग ने रहमानखेड़ा क्षेत्र में विशेष अभियान चलाया है। संभावित स्थानों पर ट्रैपिंग की जा रही है और वहां सीसीटीवी कैमरे और थर्मल ड्रोन लगाए गए हैं। जंगल में तीन मचान बनाकर बाघ पर नजर रखी जा रही है। मीठे नगर में एक पड़वे को शिकार के रूप में बांधकर बाघ को आकर्षित करने का प्रयास किया गया, लेकिन बाघ ने इसे खाकर फिर चकमा दे दिया।
डीएफओ डॉ. सितांशु पांडेय और अन्य अधिकारियों ने स्थलीय निरीक्षण कर बाघ के घूमने वाले इलाकों को चिह्नित किया है। बाघ अब तक 14 शिकार कर चुका है, जिससे उसकी गतिविधियों का पता चलता है। इसके बावजूद, वन विभाग की तैयारियों में कुछ कमियां हैं, जैसे विशेषज्ञों की तैनाती का अभाव।
बच्चों की पढ़ाई पर असर
बाघ की दहशत से सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों की शिक्षा पर हो रहा है। ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था तो की गई है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट और डिवाइस की अनुपलब्धता इसे प्रभावी नहीं बना पा रही है। बच्चे न तो स्कूल जा पा रहे हैं और न ही घर पर पढ़ाई कर पा रहे हैं। परीक्षा नजदीक होने के बावजूद बच्चों का सिलेबस अधूरा रह जाने की आशंका है।