उत्तराखंड सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस-EWS) प्रमाणपत्रों की जांच और सत्यापन प्रक्रिया शुरू करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर इस पहल को लागू किया जा रहा है। मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने सभी प्रमुख सचिव, सचिव, कमिश्नर, और जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) को इन प्रमाणपत्रों की विस्तृत जांच करने और अनियमितताओं पर सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं।
इस निर्णय का उद्देश्य ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र के दुरुपयोग को रोकना है। शिकायतें मिल रही थीं कि ऐसे लोगों को भी यह प्रमाणपत्र जारी किया जा रहा है, जो वास्तव में इसके पात्र नहीं हैं। जांच के दौरान पुराने प्रमाणपत्रों का सत्यापन किया जाएगा और नए प्रमाणपत्र जारी करने से पहले स्थलीय निरीक्षण अनिवार्य होगा। तहसीलदार स्तर के सक्षम प्राधिकारी द्वारा सत्यापन के बाद ही प्रमाणपत्र जारी किए जाएंगे।
गलत प्रमाणपत्रों पर सख्त कार्रवाई
मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने स्पष्ट किया है कि यदि जांच के दौरान यह पाया गया कि किसी प्रमाणपत्र को अवैध तरीके या नियमों के विरुद्ध जारी किया गया है, तो उसे तत्काल निरस्त कर दिया जाएगा। इसके अलावा, दोषी व्यक्ति और संबंधित अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी होगी। यह कदम प्रदेश में ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र की पारदर्शिता और सही उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
मुख्यमंत्री की पहल और भाजपा नेताओं की मांग
EWS सर्टिफिकेट की जांच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर शुरू हुई है। मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता महसूस की। भाजपा नेता रविंद्र जुगरान ने भी इस संदर्भ में 30 दिसंबर को जांच की मांग की थी। स्वास्थ्य विभाग पहले ही इस मामले में जांच शुरू कर चुका है, और अब इसे व्यापक स्तर पर लागू किया जा रहा है।
EWS सर्टिफिकेट का महत्व
उत्तराखंड में ईडब्ल्यूएस प्रमाणपत्र वर्ष 2019 से जारी किया जा रहा है। इसके माध्यम से पात्र नागरिकों को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दस प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है। उत्तराखंड लोक सेवा (आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत, इस प्रमाणपत्र के लिए परिवार की सभी स्रोतों से वार्षिक आय आठ लाख रुपये से कम होनी चाहिए।