इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने सरकारी कर्मचारियों (Government Employees) से जुड़े एक अहम मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी को सजा मिल जाती है, तो उसे सीधे उसके पद से बर्खास्त नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक उचित विभागीय जांच (Departmental Inquiry) अनिवार्य होगी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह निर्णय सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है। यह फैसला न केवल सरकारी कर्मचारियों को न्याय देने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाएगा, बल्कि सरकारी विभागों को भी यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य करेगा कि किसी भी कर्मचारी के खिलाफ सख्त कदम उठाने से पहले सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।
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बर्खास्तगी से पहले विभागीय जांच जरूरी
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी (Dismissal) केवल अदालत की सजा के आधार पर नहीं की जा सकती। कोर्ट ने इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 311(2) के तहत सरकारी सेवक को बिना उचित जांच के न तो बर्खास्त किया जा सकता है और न ही उसकी रैंक कम की जा सकती है।
इस फैसले के तहत इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कानपुर देहात के एक सरकारी स्कूल (Government School) में सहायक शिक्षक के रूप में कार्यरत शिक्षक की बर्खास्तगी को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया।
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क्या है पूरा मामला?
इस केस से जुड़े तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता मनोज कटियार 1999 में प्राथमिक विद्यालय (Primary School) में सहायक शिक्षक (Assistant Teacher) के रूप में नियुक्त हुए थे और 2017 में उनका प्रमोशन भी हुआ था।
2009 में उनके खिलाफ दहेज हत्या (Dowry Death) का मामला दर्ज हुआ। सत्र न्यायालय (Sessions Court) ने उन्हें इस मामले में दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने उन्हें उनके पद से बर्खास्त कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें बर्खास्त करने से पहले कोई विभागीय जांच नहीं की गई थी।
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हाई कोर्ट का फैसला
जस्टिस मंजीव शुक्ल की अध्यक्षता में हुई इस सुनवाई में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
- अनुच्छेद 311(2) के तहत बिना विभागीय जांच के किसी भी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त नहीं किया जा सकता।
- अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के बावजूद, एक उचित प्रक्रिया अपनाना आवश्यक है।
- याचिकाकर्ता की बहाली (Reinstatement) नए आदेश पर निर्भर करेगी, जिसे दो महीने के भीतर पारित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का भी जिक्र किया, जिनमें कहा गया है कि सरकारी सेवा में कार्यरत किसी भी व्यक्ति को बिना जांच के सीधे नौकरी से नहीं हटाया जा सकता। अनुच्छेद 311(2) के तहत किसी कर्मचारी की बर्खास्तगी या उसकी रैंक में कटौती तभी संभव है जब उचित विभागीय जांच हो और कर्मचारी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाए।
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सरकारी कर्मचारियों के लिए क्या है इस फैसले का महत्व?
इस फैसले से सरकारी कर्मचारियों को राहत मिली है। यह स्पष्ट हो गया है कि किसी भी कर्मचारी को केवल आपराधिक सजा के आधार पर तुरंत नौकरी से नहीं निकाला जा सकता, बल्कि विभागीय जांच की प्रक्रिया पूरी करनी होगी।
सरकार और विभागों पर असर
इस फैसले के बाद सरकारी विभागों को अपने नियमों की समीक्षा करनी होगी और सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी कर्मचारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई से पहले सभी प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।