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नहीं जाना चाहते जेल तो समझ लीजिए चेक बाउंस का नियम cheque bounce rules

मुंबई कोर्ट का सख्त फैसला: 3 महीने की सजा और गैर-जमानती वारंट! चेक बाउंस से जुड़े कानून और 2 साल की जेल के खतरों को समझें, ताकि आप भी इस परेशानी से बच सकें।

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फिल्मकार रामगोपाल वर्मा (Ram Gopal Verma) को मुंबई की एक अदालत ने चेक बाउंस (Cheque Bounce) मामले में तीन महीने की सजा सुनाई है। कोर्ट ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट भी जारी किया है, जिसका मतलब है कि उन्हें इस मामले में जमानत नहीं मिल सकती। आमतौर पर चेक बाउंस मामलों में जमानत मिल जाती है, लेकिन इस बार अदालत ने सख्त रुख अपनाते हुए गैर-जमानती वारंट जारी किया।

यह मामला कानूनी दृष्टि से बेहद अहम है क्योंकि यह सवाल उठाता है कि चेक बाउंस के मामलों में अदालत ने ऐसा सख्त रुख क्यों अपनाया। साथ ही यह समझना जरूरी है कि चेक बाउंस होने के पीछे क्या कारण होते हैं और इस तरह की स्थिति से बचने के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।

चेक बाउंस क्यों होता है?

चेक बाउंस की प्रक्रिया तब होती है जब चेक में लिखी गई राशि चेक जारी करने वाले के खाते में उपलब्ध नहीं होती। उदाहरण के तौर पर, अगर आपने किसी को ₹50,000 का चेक जारी किया और उस पर भुगतान के लिए एक निश्चित तारीख लिखी, लेकिन उस तारीख पर आपके खाते में ₹50,000 की राशि मौजूद नहीं है, तो बैंक उस चेक को रद्द कर देता है। यही स्थिति चेक बाउंस कहलाती है।

यह महत्वपूर्ण है कि अगर आपके खाते में ₹50,000 की जगह ₹49,999 भी हैं, तो यह स्थिति चेक बाउंस मानी जाएगी। इस वजह से चेक जारी करते समय खाता संतुलन को ध्यान में रखना बेहद आवश्यक है।

चेक बाउंस कानून, क्या कहता है भारतीय कानून?

चेक बाउंस के मामलों पर कार्रवाई भारतीय कानून के निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 (Negotiable Instrument Act 1881) की धारा 138 के तहत की जाती है। इस कानून के अनुसार:

  • चेक बाउंस होने पर चेक जारी करने वाले को एक नोटिस भेजा जाता है।
  • उसे एक निर्धारित समय सीमा के भीतर बकाया राशि का भुगतान करने का मौका दिया जाता है।
  • यदि भुगतान नहीं किया जाता, तो पीड़ित पक्ष अदालत में शिकायत दर्ज करा सकता है।

अदालत के आदेश पर चेक जारी करने वाले के खिलाफ गिरफ्तारी का आदेश भी दिया जा सकता है। इसके अलावा, अदालत आरोपी को जुर्माना भरने और मूल राशि वापस करने का निर्देश दे सकती है।

एफआईआर की आवश्यकता नहीं, फिर भी गिरफ्तारी संभव

भारतीय कानून के मुताबिक, चेक बाउंस के मामले में एफआईआर दर्ज कराने की जरूरत नहीं होती। पीड़ित पक्ष सीधे मजिस्ट्रेट के पास जाकर शिकायत दर्ज कर सकता है।

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यह ध्यान देने योग्य है कि इस कानून के तहत स्वचालित गिरफ्तारी नहीं होती, लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस कार्रवाई कर सकती है। अदालत इस मामले में आरोपी पर जुर्माना लगाने से लेकर जेल भेजने तक का आदेश दे सकती है।

दो साल तक की जेल और दोगुना जुर्माने का प्रावधान

नए कानून के मुताबिक, चेक बाउंस के मामलों को छह महीने के भीतर निपटाने का प्रयास किया जाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति का पहली बार चेक बाउंस होता है, तो उसे बिना मुकदमे के ही मामले को निपटाने का अवसर दिया जाता है।

हालांकि, अगर किसी व्यक्ति का चेक बार-बार बाउंस होता है, तो उसे सख्त दंड भुगतने पड़ सकते हैं।

  • दो या अधिक बार चेक बाउंस होने पर आरोपी को दो साल तक की जेल हो सकती है।
  • इसके साथ ही, चेक की मूल राशि का दोगुना जुर्माना लगाया जा सकता है।

शिकायत कहां दर्ज की जा सकती है?

अब चेक बाउंस की शिकायत उस स्थान पर भी की जा सकती है जहां चेक जारी किया गया हो। इससे पीड़ित पक्ष को न्याय पाने में सुविधा होगी।

इस नए नियम का उद्देश्य है कि ऐसे मामलों को तेजी से निपटाया जाए और बार-बार चेक बाउंस करने वाले व्यक्तियों को गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना पड़े।

चेक जारी करते समय क्या बरतें सावधानी?

चेक बाउंस जैसी स्थिति से बचने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. चेक जारी करने से पहले यह सुनिश्चित करें कि खाते में पर्याप्त राशि उपलब्ध है।
  2. चेक पर सही हस्ताक्षर करें और तारीख स्पष्ट रूप से लिखें।
  3. गलतियों से बचने के लिए चेक की जानकारी की दोबारा जांच करें।
  4. चेक जारी करते समय प्राप्तकर्ता से भी सभी विवरण सुनिश्चित करें।

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