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Mahakumbh 2025: अखाड़ों का रोजाना 25 लाख रुपये का खर्च! जानिए कहां से आता है इतना पैसा, कैसे भरते हैं इनकम टैक्स?

अखाड़े महाकुंभ में सिर्फ स्नान के लिए नहीं आते, बल्कि 6 साल की कमाई एक झटके में कर देते हैं दान! क्या आपको पता है कि रोजाना लाखों रुपये कहाँ खर्च होते हैं?

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प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान के दौरान साधु-संतों और अखाड़ों ने अमृत स्नान किया। इस दौरान अखाड़ों ने अपनी भव्यता और संगठन क्षमता से सभी का ध्यान आकर्षित किया। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि अखाड़े महाकुंभ में धन अर्जित करने के लिए नहीं, बल्कि अन्न और धन का दान करने के लिए आते हैं। उनकी ओर से विशाल भंडारे और सेवा कार्य आयोजित किए जाते हैं, जिनमें लाखों श्रद्धालु भोजन और अन्य सेवाओं का लाभ उठाते हैं।

अखाड़ों की वित्तीय व्यवस्था और प्रशासन

अखाड़ों का संचालन अत्यंत संगठित तरीके से किया जाता है। प्रत्येक अखाड़े में कई महत्वपूर्ण पद होते हैं, जो विभिन्न कार्यों का संचालन करते हैं। इनमें प्रमुख रूप से मुंशी, प्रधान, थानापति और कोठार जैसे पद शामिल होते हैं। इनके अलावा, अखाड़ों का वित्तीय प्रबंधन भी अत्यधिक पारदर्शी होता है।

अखाड़ों के चार्टर्ड अकाउंटेंट की भूमिका

अखाड़ों की वित्तीय गतिविधियों का संचालन और निगरानी चार्टर्ड अकाउंटेंट के माध्यम से की जाती है। ये पेशेवर न केवल अखाड़ों के प्रत्येक खर्च का हिसाब रखते हैं, बल्कि उनका आयकर रिटर्न भी फाइल करते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, महाकुंभ के दौरान अखाड़ों का औसत दैनिक खर्च 25 लाख रुपये तक पहुंचता है। इसमें अन्‍न क्षेत्र, भंडारा और अन्य धार्मिक गतिविधियों पर होने वाला खर्च शामिल है।

महाकुंभ में अखाड़ों का दान

महाकुंभ में अखाड़ों की ओर से हर दिन विशाल भंडारों का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं। न केवल भोजन प्रदान किया जाता है, बल्कि प्रसाद के साथ दक्षिणा भी दी जाती है। इस भव्य आयोजन के लिए अखाड़ों की ओर से प्रतिदिन लाखों रुपये खर्च किए जाते हैं।

अखाड़ों का महाकुंभ में खर्च

कुल मिलाकर पूरे महाकुंभ में अखाड़ों द्वारा 10 करोड़ रुपये तक खर्च किए जाने का अनुमान है। प्रतिदिन लगभग 25 लाख रुपये का खर्च आता है। यह सवाल स्वाभाविक रूप से उठता है कि अखाड़ों की इस प्रकार की वित्तीय व्यवस्था कैसे संचालित होती है और उनकी आय के स्रोत क्या हैं।

अखाड़ों के प्रशासनिक पद

अखाड़ों का संचालन अत्यंत सुव्यवस्थित ढंग से किया जाता है। पंचायती अखाड़ा निरंजनी में दो प्रधान होते हैं – गिरी और पुरी। इन दोनों प्रधानों के हस्ताक्षर से ही अखाड़े के सभी वित्तीय लेनदेन होते हैं।

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इसके अलावा, निरंजनी अखाड़े में 8 श्रीमहंत होते हैं, जिनमें से 7 सचिव बनाए जाते हैं। अखाड़े के समस्त प्रशासनिक और वित्तीय कार्यों की जिम्मेदारी इन्हीं सचिवों पर होती है। अन्य नागा संन्यासियों को भी विभिन्न प्रशासनिक कार्य सौंपे जाते हैं।

अखाड़ों की आय के स्रोत

अखाड़े केवल दान लेने के लिए नहीं, बल्कि दान करने के लिए महाकुंभ में आते हैं। अखाड़ों की आय के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं:

  1. खेती-बाड़ी और संपत्तियां: अखाड़ों के पास अपनी जमीनें और संपत्तियां होती हैं, जिनसे उन्हें किराया प्राप्त होता है।
  2. मठ और मंदिरों से आय: अखाड़ों से जुड़े मंदिरों और मठों की ओर से होने वाली आय भी उनके वित्तीय संसाधनों में योगदान देती है।
  3. अन्य धार्मिक गतिविधियां: अखाड़ों को समय-समय पर विभिन्न धार्मिक आयोजनों से भी आय प्राप्त होती है।

आयकर और वित्तीय पारदर्शिता

अखाड़ों की समस्त वित्तीय गतिविधियों का लेखा-जोखा रखा जाता है। प्रत्येक अखाड़े का ऑडिट चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा किया जाता है और समय पर इनकम टैक्स रिटर्न भी फाइल किया जाता है। इस प्रकार, अखाड़ों की आय और व्यय की संपूर्ण प्रक्रिया पारदर्शी होती है।

महाकुंभ में अखाड़ों का समर्पण

प्रयागराज महाकुंभ केवल धार्मिक आस्था का संगम नहीं है, बल्कि यह अखाड़ों की सेवा भावना का भी प्रतीक है। अखाड़ों का मानना है कि प्रयागराज पुण्य की भूमि है और यहां आने वाले गृहस्थ और संन्यासी दोनों ही पुण्य अर्जित करने के लिए आते हैं।

6 वर्षों की आय कुंभ में होती है दान

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी के अनुसार, अखाड़े की छह वर्षों की कमाई कुंभ और महाकुंभ में दान कर दी जाती है। यह परंपरा दानवीर महाराजा हर्षवर्धन के काल से चली आ रही है। अखाड़े इस दौरान अपनी संपत्तियों और मंदिरों से प्राप्त धनराशि को धर्मार्थ कार्यों में लगाते हैं और आगामी वर्षों के लिए पुनः धन संग्रह करते हैं।

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