![आपकी जमीन पर सरकार का हक? सुप्रीम कोर्ट ने बताया कब हो सकता है अधिग्रहण – जानें अपने अधिकार!](https://rcisgbau.in/wp-content/uploads/2025/02/aSupreme-Court-1024x576.jpg)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े मामलों में ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार द्वारा किसी की निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने से पहले नागरिक को सूचित किया जाना अनिवार्य है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान नागरिकों को अपनी आपत्तियां दर्ज कराने और उचित मुआवजा पाने का पूरा अधिकार है।
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भूमि अधिग्रहण से पहले नागरिकों को सूचना देना राज्य का कर्तव्य
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार शामिल थे, ने कहा कि भूमि अधिग्रहण के मामलों में उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है। राज्य सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्य (Public Purpose) के लिए किया जा रहा है। यदि सरकार इस प्रक्रिया को पारदर्शी ढंग से नहीं अपनाती है, तो यह अधिग्रहण संविधान के अनुच्छेद 300ए (Article 300A) का उल्लंघन होगा।
कोर्ट ने कहा कि भूमि मालिक को उसकी संपत्ति के अधिग्रहण की सूचना दी जानी चाहिए और उसे यह अवसर भी दिया जाना चाहिए कि वह अपनी आपत्ति दर्ज करा सके। बिना सुनवाई के सरकार किसी की संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती।
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अनुच्छेद 300ए के तहत नागरिकों को मिलते हैं अधिकार
भारत के संविधान का अनुच्छेद 300ए यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को उसकी संपत्ति से विधिसम्मत प्रक्रिया के बिना वंचित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकारों को भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) की प्रक्रिया को कुशलतापूर्वक संचालित करना होगा और नागरिकों के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।
सरकार को बताना होगा कि अधिग्रहण का उद्देश्य सार्वजनिक हित में है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भूमि अधिग्रहण केवल तभी वैध होगा जब इसे किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जाए। सरकार को यह प्रमाणित करना होगा कि अधिग्रहण बुनियादी ढांचे (Infrastructure Development), रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy), परिवहन (Transport), स्वास्थ्य सेवाओं (Healthcare Services) या अन्य किसी जनहितकारी योजना के लिए किया जा रहा है। यदि यह प्रमाणित नहीं किया गया, तो अधिग्रहण अवैध माना जाएगा।
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कोलकाता नगर निगम पर लगा ₹5 लाख का जुर्माना
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता नगर निगम द्वारा किए गए एक भूमि अधिग्रहण को अवैध करार देते हुए इस पर ₹5 लाख का जुर्माना (Penalty) लगाया है। यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ अपील से संबंधित था। हाईकोर्ट ने पहले ही कोलकाता नगर निगम अधिनियम की धारा 352 के तहत किए गए अधिग्रहण को अमान्य कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के इस फैसले को सही ठहराया और अपील को खारिज कर दिया।
उचित मुआवजा देना राज्य सरकार का दायित्व
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि भूमि मालिकों को उचित मुआवजा (Fair Compensation) मिलना चाहिए। भूमि अधिग्रहण करने से पहले राज्य सरकार को प्रभावित व्यक्ति को यह बताना होगा कि उसे कितने मुआवजे की पेशकश की जा रही है। यदि भूमि मालिक को मुआवजा अनुचित लगता है, तो वह इसके खिलाफ अपील कर सकता है।
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सरकार को तय समय-सीमा के भीतर पूरी करनी होगी प्रक्रिया
कोर्ट ने यह भी कहा कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रखा जा सकता। राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रक्रिया एक निर्धारित समय सीमा के भीतर पूरी की जाए और इसमें अनावश्यक देरी न हो।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव
इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि निजी संपत्ति का अधिकार (Right to Private Property) भारत में एक संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त अधिकार है, जिसे बिना उचित प्रक्रिया के छीना नहीं जा सकता। यह फैसला राज्य सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण दिशानिर्देश के रूप में कार्य करेगा और नागरिकों को उनकी संपत्तियों की सुरक्षा प्रदान करेगा।