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ट्रंप का बड़ा झटका! कोर्ट ने रोकी अमेरिका में जन्मे बच्चों की नागरिकता खत्म करने की कोशिश

क्या ट्रंप का नया आदेश बदल देगा अमेरिकी संविधान का मूल अधिकार? भारतीय प्रवासियों और हर साल जन्म लेने वाले 1.5 लाख बच्चों पर इसका गहरा असर, जानिए न्यायपालिका और डेमोक्रेटिक राज्यों की सख्त प्रतिक्रिया।

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अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा नागरिकता संबंधी आदेश ने न केवल राजनीति बल्कि न्यायिक और सामाजिक बहस को भी भड़काया है। ट्रंप, जो रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े हैं, ने अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद अमेरिकी एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे उन बच्चों को नागरिकता प्रदान करना बंद करें, जिनके माता-पिता में से कोई भी अमेरिकी नागरिक या स्थायी निवासी नहीं हैं। यह आदेश अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन में दिए गए जन्म आधारित नागरिकता के अधिकार को चुनौती देने के रूप में देखा जा रहा है।

न्यायपालिका का रुख और प्रारंभिक प्रतिक्रियाएं

न्यायमूर्ति कॉफेनॉर ने ट्रंप के आदेश पर रोक लगाते हुए इसे “असंवैधानिक” करार दिया। उन्होंने कहा, “मुझे समझ में नहीं आ रहा कि कोई कानूनविद यह कैसे कह सकता है कि यह आदेश संवैधानिक है। यह मेरी समझ से बाहर है।” इस फैसले के खिलाफ वाशिंगटन, एरिजोना, इलिनोइस और ओरेगन जैसे डेमोक्रेटिक शासित राज्यों ने यह दावा किया कि ट्रंप का यह कदम संविधान के खिलाफ है। उनका कहना है कि 14वें संशोधन के अनुसार, जो भी व्यक्ति अमेरिका में जन्मा है, वह स्वाभाविक रूप से इस देश का नागरिक बनता है।

प्रवासियों और नागरिक अधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया

अमेरिकी नागरिक स्वतंत्रता संघ (ACLU) ने प्रवासी संगठनों और एक गर्भवती महिला के साथ मिलकर ट्रंप के इस आदेश को अदालत में चुनौती दी है। इन संगठनों का कहना है कि यह कदम न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि प्रवासी समुदाय के खिलाफ अन्यायपूर्ण और विभाजनकारी है।

ट्रंप के आदेश ने प्रवासी परिवारों, विशेषकर भारतीय समुदाय में, एक अनिश्चितता और डर का माहौल पैदा कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, अमेरिका में हर साल करीब 1.5 लाख बच्चों को नागरिकता मिलती है, और यह निर्णय सीधे इन परिवारों को प्रभावित कर सकता है।

भारतीय समुदाय पर आदेश का प्रभाव

ट्रंप के आदेश के बाद कई भारतीय दंपतियों ने अमेरिका में जल्दबाजी में बच्चे पैदा करने की योजना बनाई। फरवरी 20 की डेडलाइन से पहले कई भारतीय जोड़ों ने डॉक्टरों से संपर्क कर सी-सेक्शन ऑपरेशन के लिए अपॉइंटमेंट बुक कर ली। इसने स्वास्थ्य सेवाओं और अस्पतालों पर भी अप्रत्याशित दबाव डाला। यह स्थिति इस बात को रेखांकित करती है कि प्रवासी समुदाय पर यह आदेश कितना व्यापक और गहरा प्रभाव डाल सकता है।

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अटॉर्नी जनरल एंड्रिया जोय कैम्पबेल का बयान

मैसाचुसेट्स की अटॉर्नी जनरल एंड्रिया जोय कैम्पबेल ने इस पर सख्त प्रतिक्रिया दी और कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप के पास संवैधानिक अधिकारों को छीनने की शक्ति नहीं है। उनका यह कदम कानून और संवैधानिक व्यवस्थाओं के खिलाफ है।”

उनका यह बयान उन प्रवासी समुदायों और अधिकार संगठनों के लिए एक महत्वपूर्ण समर्थन के रूप में देखा जा रहा है, जो इस आदेश के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।

न्यायिक लड़ाई का भविष्य

ट्रंप के इस आदेश के खिलाफ दायर मुकदमों ने उनकी प्रशासनिक नीतियों को लेकर एक बड़ी न्यायिक लड़ाई शुरू कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है और इसका असर भविष्य में जन्म आधारित नागरिकता के कानून पर भी पड़ सकता है।

ट्रंप के इस आदेश को उनके कड़े इमिग्रेशन विरोधी रुख का हिस्सा माना जा रहा है, जो उन्होंने अपने पूरे कार्यकाल के दौरान अपनाया था। हालांकि, इस आदेश के खिलाफ डेमोक्रेटिक राज्यों और संगठनों की एकजुटता यह दिखाती है कि संविधान को बचाने के लिए सभी पक्ष एक साथ खड़े हैं।

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