पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) से जुड़े विवाद भारत में एक आम समस्या हैं। संपत्ति विवाद (Property Dispute) का मुख्य कारण अक्सर जागरूकता की कमी और जटिल कानून होते हैं। पैतृक संपत्ति वह होती है जो चार पीढ़ियों से हस्तांतरित होती आ रही हो। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि इस संपत्ति पर दावा करने की एक समयसीमा होती है? आइए, पैतृक संपत्ति से जुड़े अधिकार, कानून और जरूरी जानकारी पर विस्तार से चर्चा करें।
पैतृक संपत्ति पर दावा करने की समयसीमा
कानून के अनुसार, पैतृक संपत्ति पर दावा करने की न्यूनतम समयसीमा 12 वर्ष है। यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि उसे अपनी पैतृक संपत्ति से गलत तरीके से वंचित किया गया है, तो उसे 12 वर्षों के भीतर कोर्ट में दावा करना होगा। इस अवधि के बाद, दावा करने का अधिकार समाप्त हो जाता है। हालांकि, यदि व्यक्ति के पास वाजिब कारण हैं, तो कोर्ट सुनवाई कर सकता है।
समय पर कार्रवाई करना बेहद जरूरी है क्योंकि देरी से संपत्ति का अधिकार (Property Rights) खो सकता है।
क्या पैतृक संपत्ति में अधिकार छिन सकता है?
पैतृक संपत्ति से अधिकार छीनना आसान नहीं है। माता-पिता केवल अपनी अर्जित संपत्ति (Earned Property) से संतान को बेदखल कर सकते हैं, लेकिन पैतृक संपत्ति का मामला अलग है। कोर्ट केवल विशेष परिस्थितियों में ही किसी को पैतृक संपत्ति से वंचित करने की अनुमति दे सकता है। हालांकि, इस प्रक्रिया में काफी समय और कानूनी पेचीदगियां शामिल होती हैं।
पैतृक संपत्ति की परिभाषा
पैतृक संपत्ति वह संपत्ति है जो परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती आई हो। इसके लिए यह शर्त होती है कि चार पीढ़ियों तक परिवार में कोई बंटवारा न हुआ हो। यदि किसी पीढ़ी में संपत्ति का विभाजन हो चुका है, तो वह संपत्ति पैतृक नहीं मानी जाएगी। ध्यान दें कि हर विरासत में मिली संपत्ति (Inherited Property) पैतृक संपत्ति नहीं होती।