सरकारी कर्मचारियों की पेंशन उनके परिवार के जीवनयापन और आर्थिक स्थिरता का एक महत्वपूर्ण साधन होती है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में इस संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि पेंशन का अधिकार किन उत्तराधिकारियों तक सीमित होगा। इस फैसले ने सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 (Pension Rules 1972) और हिंदू दत्तक ग्रहण एवं रखरखाव अधिनियम 1956 (HAMA 1956) के प्रावधानों को विस्तार से व्याख्या की है।
पारिवारिक पेंशन का कौन नहीं है हकदार?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके पति या पत्नी द्वारा गोद ली गई संतान पारिवारिक पेंशन की हकदार नहीं होगी। यह निर्णय बॉम्बे हाईकोर्ट के 2015 के आदेश को बरकरार रखते हुए दिया गया, जिसमें सिविल सेवा पेंशन नियम 1972 के भाग 54 (14B) का हवाला दिया गया था। इस नियम के अनुसार, केवल नौकरी के दौरान गोद ली गई संतानों को ही पारिवारिक पेंशन का अधिकार मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ का निर्णय
जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए यह निर्णय दिया। अदालत ने हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम 1956 (HAMA 1956) की धारा 8 और 12 का जिक्र करते हुए कहा कि इस अधिनियम के तहत एक महिला को संतान गोद लेने का अधिकार है, लेकिन पारिवारिक पेंशन के दायरे में इसे शामिल नहीं किया जा सकता।
दत्तक ग्रहण के नियमों पर अदालत का रुख
HAMA 1956 के तहत, एक विवाहित हिंदू महिला अपने पति की सहमति के बिना संतान गोद नहीं ले सकती, जबकि विधवा या तलाकशुदा महिलाओं को यह अधिकार स्वतंत्र रूप से प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पारिवारिक पेंशन के मामले में गोद लेने की प्रक्रिया केवल सरकारी कर्मचारी के जीवनकाल में ही मान्य है।
मामले का विवरण
यह मामला नागपुर के श्रीधर चिमुरकर से संबंधित है, जो राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन में अधीक्षक के पद पर कार्यरत थे। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने एक बच्चे को गोद लिया और बाद में पुनर्विवाह कर लिया। गोद लिए गए पुत्र ने पारिवारिक पेंशन पर दावा किया, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।