सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि कोई भी भाई अपनी विवाहित बहन की प्रॉपर्टी पर, जो उसे उसके पति या ससुर से विरासत में मिली हो, अधिकार नहीं जता सकता। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों का हवाला देते हुए महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को स्पष्ट किया है। इस फैसले का विशेष महत्व उन मामलों में है जहां भाई-बहन के बीच संपत्ति को लेकर विवाद होते हैं।
मामला: उत्तराखंड उच्च न्यायालय का आदेश
यह मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मार्च 2015 के आदेश से संबंधित है। इस मामले में एक व्यक्ति ने अपनी विवाहित बहन की संपत्ति पर अधिकार जताया था, जो अब मृतक हो चुकी थी। व्यक्ति का कहना था कि उसे अपनी बहन की संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए। यह संपत्ति देहरादून स्थित एक प्रॉपर्टी से जुड़ी थी, जो पहले उसकी बहन के ससुर द्वारा किराए पर ली गई थी और बाद में उसके पति ने इसे संभाला। पति की मृत्यु के बाद, बहन संपत्ति की किरायेदार बन गई थी। जब उसकी मृत्यु हुई, तब उसके भाई ने इस संपत्ति पर दावा पेश किया।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भाई अपनी विवाहित बहन की संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(2)(बी) का संदर्भ देते हुए कहा कि यदि एक महिला ने अपने पति या ससुर से संपत्ति विरासत में प्राप्त की है, तो उस संपत्ति पर अधिकार केवल पति और ससुर के परिवार के उत्तराधिकारियों का होगा, न कि महिला के भाई का।
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और इसके प्रावधान
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत उत्तराधिकार की स्थिति को स्पष्ट किया। अगर कोई महिला अपने पति या ससुर से संपत्ति प्राप्त करती है, तो उसकी मृत्यु के बाद, उस संपत्ति पर पति के परिवार के सदस्य ही अधिकार रखेंगे। यदि महिला की कोई संतान नहीं है, तो यह संपत्ति पति के परिवार के अन्य सदस्यों को मिलेगी, न कि उसके भाई को।
यह प्रावधान स्पष्ट करता है कि भाई-बहन को उत्तराधिकारियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, विशेष रूप से तब जब संपत्ति महिला के पति या ससुर से प्राप्त की गई हो।
कोर्ट का तर्क और निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता, जो महिला का भाई है, उसे न तो ‘वारिस’ माना जाएगा और न ही वह महिला के परिवार का हिस्सा है। चूंकि महिला का भाई उस संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता, जो उसे उसके पति या ससुर से प्राप्त हुई थी, इसलिए उसका उस पर दावा अनुचित था। कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता उस संपत्ति पर अनधिकृत रूप से कब्जा कर रहा है और उसे तुरंत बेदखल किया जाना चाहिए।
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में जो समावेशी सूची दी गई है, उसमें भाई-बहन को उत्तराधिकारियों में नहीं गिना गया है। इसका तात्पर्य यह है कि कोई भाई अपनी विवाहित बहन की संपत्ति पर कानूनी रूप से दावा नहीं कर सकता।
कानून में स्पष्टता और महिला अधिकारों की सुरक्षा
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। इसके द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि विवाहित महिलाओं की संपत्ति पर उनके भाइयों का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, जब वह संपत्ति उनके पति या ससुर से प्राप्त की गई हो। इस फैसले से भाई-बहन के बीच संपत्ति विवादों के समाधान में भी मदद मिलेगी, क्योंकि यह कानूनी स्थिति को स्पष्ट करता है।
यह निर्णय न केवल महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि संपत्ति विवादों को सुलझाने में भी सहायक होगा। अब कोई भी भाई अपनी विवाहित बहन की संपत्ति पर बिना किसी कानूनी आधार के दावा नहीं कर सकता, खासकर जब वह संपत्ति उसके पति या ससुर से विरासत में प्राप्त की हो।
संपत्ति विवादों में नई दिशा
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने संपत्ति विवादों में एक नई दिशा तय की है। भाई-बहन के बीच संपत्ति को लेकर उत्पन्न होने वाले विवादों में अब यह साफ हो गया है कि भाई को अपनी विवाहित बहन की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इस फैसले ने महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को सुनिश्चित किया है और ऐसे मामलों में न्याय की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया है।
इस फैसले से यह संदेश गया है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है, और यह सुनिश्चित किया गया है कि उन्हें अपनी संपत्ति पर पूर्ण अधिकार हो।