सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें मांग की गई कि आईएएस-IPS और आईपीएस-IPS अधिकारियों के बच्चों को एससी-SC और एसटी-ST आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। इस याचिका पर गुरुवार को अदालत ने विचार करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने स्पष्ट किया कि यह संसद का अधिकार है कि वह यह तय करे कि आरक्षण का दायरा किसे मिलना चाहिए और किसे नहीं। अदालत ने कहा कि संसद ही इस पर कानून बना सकती है।
क्रीमी लेयर का सुझाव और सुप्रीम कोर्ट की राय
अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान सुझाव दिया था कि एससी-SC और एसटी-ST आरक्षण में भी क्रीमी लेयर का प्रावधान होना चाहिए। इस सुझाव के अनुसार, ऐसे दलित और आदिवासी वर्ग के बच्चों को आरक्षण के दायरे से बाहर किया जा सकता है, जिनके माता-पिता उच्च पदों जैसे आईएएस-IPS और आईपीएस-IPS पर हैं। इसका उद्देश्य था कि आरक्षण का लाभ उन वंचित लोगों तक पहुंचे, जो अब तक मुख्यधारा में नहीं आ पाए हैं।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह महज एक राय थी, न कि कोई आदेश। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि इस मामले में अदालत का निर्णय सर्वसम्मति से यह था कि एससी-SC और एसटी-ST आरक्षण में उपवर्गीकरण होना चाहिए।
याचिका का विवरण और अदालत का निर्णय
यह याचिका संतोष मालवीय द्वारा दायर की गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश में आईएएस-IPS और आईपीएस-IPS अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए। मालवीय ने इस विषय को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में भी उठाया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट की। अदालत ने कहा कि संसद ही यह तय कर सकती है कि आरक्षण में किसे शामिल करना है और किसे बाहर करना है।
समाज की मुख्यधारा और आरक्षण की प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने पहले भी सुझाव दिया था कि एससी-SC और एसटी-ST वर्ग में क्रीमी लेयर के तहत ऐसे लोगों को आरक्षण के दायरे से बाहर किया जाए, जो अब मुख्यधारा में आ चुके हैं। यह सुझाव इस विचार पर आधारित था कि आरक्षण का लाभ उन लोगों को प्राथमिकता से मिलना चाहिए, जो अभी भी समाज में पिछड़े हैं।